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लेखनी कहानी -26- Dec -2022 मकाफात ए अमल एपिसोड 37



अशफ़ाक़ साहब  घर की गली को पार करते हुए  अपने घर की और बढ़ रहे थे , उनके दिमाग़ में वो सब बाते चल रही थी जो भी बाते उनके और दरबान के बीच हुयी और साथ ही साथ प्रोफेसर साहब ने भी जो कुछ ज़ोया के बारे में बताया, उन्हें यकीन नही हो रहा था की उनकी बेटी इस तरह उन्हें धोखा दे रही थी,

पढ़ाई की तो कोई बात नही थी, माना एक विषय में फ़ैल हो गयी थी , दोबारा पास हो जाती लेकिन उसने उनसे और घर वालों से झूठ बोला की वो पास हो गयी हैँ और तो और उस लफंगे लड़के से भी मिल रही हैँ, जिसे मोहल्ले में कोई भी पसंद नही करता, अपनी बेटी का इतना बड़ा सच जनने के बाद उनमे हिम्मत नही थी की वो दोबारा अपनी बेटी का सामना करे, क्यूंकि आज उनका दिल टूट सा गया था, आज उनके उस भरोसे की धज्जियाँ उड़ गयी थी जो वो अपनी बेटी पर करते थे 


यही सब सोच विचार करते हुए , ना जाने कब वो घर की देहलीज पर आन खड़े हुए, आज इतनी लम्बी गली किस तरह जल्दी से पार हो गयी उन्हें पता ही नही चला, वो दरवाज़े पर अपने जज़्बात को काबू में लिए खड़े हुए थे , उनमे हिम्मत नही थी की वो अपनी बेटी का सामना कर सके, उस बेटी का जिस पर उन्हें बहुत मान था


बहुत देर कश्मकश में खड़े रहने के बाद, जैसे ही अशफ़ाक़ साहब ने दरवाज़ा खोलना चाहा  उससे पहले ही दरवाज़ा खुल गया 

सामने उनकी बीवी सेहर खड़ी थी , जो की अपने शोहर को इस तरह दरवाज़े पर खड़े चौक सी गयी और बोली " आप,,, दरवाज़े पर क्यू खड़े थे, दरवाज़ा क्यू नही खट खटाया? मैं नही आती तो आप दरवाज़े पर ही खड़े रहते "


अशफ़ाक़ साहब अपनी बीवी को इस तरह अचानक दरवाज़े पर देख घबरा से गए  और कापती ज़ुबान में बोले " म,,, म,,,, मैं तो अभी आया था ,,, और आपने दरवाज़ा खोल दिया "


"क्या हुआ हैँ आपको? मुझे आपकी तबीयत ठीक नही लग रही, चलिए आइये अंदर आइये, मैं अभी ज़ोया से कहकर चाय बनवाती हूँ आपके लिए " सेहर जी ने कहा


"ज,,, ज,,, जोया,,, घर आ गयी क्या?" अशफ़ाक़ साहब ने पूछा

"जी, वो तो बहुत देर पहले ही घर आ गयी हैँ, लेकिन आप क्यू पूछ रहे हैँ "सेहर जी ने पूछा


"बुलाओ उसे, मुझे कुछ पूछना हैँ उससे " अशफ़ाक़ साहब ने घर में घुसते हुए कहा


"क्या बात हैँ? अशफ़ाक़ साहब  सब ठीक तो हैँ, इस तरह अचानक ज़ोया से क्या काम हैँ आपको ?" सेहर जी ने पूछा


"बुलाओ उसे, मेरे पास इतना समय नही की आपके सवालों के जवाब देता फिरू , कहा हैँ ज़ोया? अभी और इसी वक़्त बुलाओ उसे मेरे सामने " अशफ़ाक़ साहब ने थोड़ा गुस्से के लहजे से कहा


"  ज़ोया,, ज़ोया,,, बाहर आ तेरे अब्बू बुला रहे हैँ " सेहर जी ने ज़ोया को आवाज़ लगाते हुए कहा 


"या अल्लाह खेर, ज़रूर कोई बात हुयी हैँ, वरना आज से पहले तो मैंने आपको कभी इस तरह ज़ोया को लेकर गुस्से में नही देखा  " सेहर जी ने घबराते हुए कहा


"काश पहले ये गुस्सा किया होता, तो आज ये दिन देखने को नही मिलता " अशफाक साहब ने कहा


"खुदाया, मेरा दिल बैठे जा रहा हैँ, जो भी हैँ साफ साफ बता दीजिये,,, कही कुछ ऊंच नीच तो नही कर बैठी हमारी बेटी " सेहर जी ने कहा


"सब कुछ बता दूंगा, पहले ज़ोया को बुलाओ, मुझे उसके मुँह से ही सुनना हैँ " अशफ़ाक़ साहब ने कहा


सेहर जी इससे पहले ज़ोया को आवाज़ लगाती, उससे पहले ही ज़ोया बाहर आ गयी थी और आरज़ू भी इस तरह बरामदे में हो रहे शोर को सुन बाहर आ जाती हैँ



"जी,, अम्मी आपने बुलाया मुझे,, कुछ काम हैँ क्या?" ज़ोया ने कहा


"हाँ कुछ काम हैँ जब ही तो तुझे बुलाया हैँ, तेरे अब्बा को कुछ पूछना हैँ तुझसे  " सेहर जी ने कहा


ज़ोया अपने अब्बू को गुस्से में देख थोड़ा डरते हुए बोली " ज,,, ज,,, जी अब्बू कहिये , क्या कहना हैँ आपको? "


अशफ़ाक़ साहब ने उसकी तरफ देखा और बोले " तुम कॉलेज से कब और कैसे आई हो "

"जी,," ज़ोया ने थोड़ा अचम्बे से पूछा उसे ये सवाल कुछ अजीब लगा


और साथ ही साथ सेहर जी को भी थोड़ा अजीब लगा और वो बोल पड़ी " ये केसा सवाल हैँ,, जिससे जाती हैँ उसी से वापस आयी होगी बस से "


"मैंने आपसे नही पूछा,, जो आप वजाहत दे रही हैँ , मैंने ज़ोया से पूछा हैँ की वो आज कॉलेज से कब और किसके साथ आयी हैँ " अशफ़ाक़ साहब ने कहा


आरज़ू जो की इस तरह सामने खड़े अपने अब्बू को गुस्से में देख रही थी उसे समझ आ गया था की ज़रूर कुछ गड़ बढ़ हैँ, इसलिए वो भी बीच में आयी और बोली " अब्बू ये केसा सवाल हैँ, आप जानते तो हैँ ज़ोया कॉलेज बस से या फिर कभी रिक्शा से आती जाती हैँ अपनी सहेलियों के साथ  "


"ये तो हम लोगो को पता हैँ, की हमारी साहब जादी बस और रिक्शा से कॉलेज जाती हैँ, जरा इनके मुँह से भी सुन लिया जाए की ये किससे जाती हैँ, बताओ जोया मैं कुछ पूछ रहा हूँ " अशफ़ाक़ साहब ने कहा


ज़ोया जो इस तरह सामने खड़े अपने बाप के सवाल में कही खो सी गयी थी , इस तरह अचानक अपने अब्बू के मुँह से इस तरह का सवाल सुनने की उसे उम्मीद नही थी, उसे लग रहा था की कही ना कही उसके पिता को सच का पता तो नही चल गया, क्यूंकि जिस तरह आज वो पूछ रहे हैँ उससे तो यही लगता हैँ, की शायद उन्हें कुछ तो पता लग गया हैँ उसके और हम्माद के बारे में


लेकिन कही ना कही उसे ये भी था,, की आखिर अब्बा को किस तरह पता लग सकता हैँ, क्या पता अब्बा वैसे ही जानना चाहते हो मेरे कॉलेज जाने के बारे में ज़ोया ये सब सोच ही रही थी की उसकी माँ ने उसे झाँझोड़ा और बोली " कहा खो गयी, मुँह में दही जमा लिया हैँ क्या तूने,, सामने खड़ा तेरा बाप तुझसे कुछ पूछ रहा हैँ और तू हैँ की माटी की मूरत बनी खड़ी हैँ, अब बता कॉलेज से कैसे आयी हैँ "


ज़ोया ने हकलाते हुए कहा "अ,,,, अ,,,,, अब्बा वो मैं,, आज, आज, वो मैं,,,,,"

"मैं, वो, आज ही करती रहेगी या उसके आगे भी कुछ बोलेगी "सेहर जी ने कहा


"आप चुप रहिये, मैं पूछ रहा हूँ ना " अशफ़ाक़ साहब ने सेहर जी को डांट लगाते हुए कहा

अशफ़ाक़ साहब ने ज़ोया की तरफ देखा इस तरह गुस्से में अपने पिता को देख ज़ोया बोल पड़ी" अब्बा,,, मैं कॉलेज से आज रिक्शा में घर आयी हूँ, "


"किसके साथ " अशफ़ाक़ साहब ने पूछा


"क्या मतलब किसके साथ, अपनी सहेलियों के साथ " सेहर जी कुछ और कहती उससे पहले ही अशफ़ाक़ साहब ने अपने मुँह पर ऊँगली रख उन्हें चुप करा दिया और ज़ोया की और इशारा करते हुए बोले " इसे बताने दो, आप लोगो की बात को सुन लूँगा  "


"ज,, ज,, जी अब्बा अम्मी सही कह रही हैँ, मैं अपनी सहेलियों के साथ आयी थी  "ज़ोया ने कहा


"इस तरह साफ झूठ बोलते देख अशफ़ाक़ साहब को बहुत गुस्सा आ रहा था अपनी बेटी पर मन तो कर रहा था उनका की उसे खींच कर मारे


"अब तो पता चल गया ना आपको , अब बता दीजिये की आप ये सब क्यू पूछ रहे थे ," सेहर जी ने कहा

" आपकी बेटी झूठ बोल रही हैँ, कि वो रिक्शा से अपनी सहेलियों के साथ आयी हैँ, और हमें देखो कितने बेवक़ूफ़ हैँ उसकी ये बात मान भी लेते हैँ, दरअसल सच तो ये हैँ कि ये अपनी सहेलियों के साथ नही बल्कि एक लफंगे लड़के के साथ बाइक पर बैठ कर आयी हैँ जो इसे सुबह को छोड़ने जाता हैँ और दोपहर को लेने जाता, और वो लड़का कोई और नही हमारी ही गली का लफंगा लड़का हम्माद हैँ "अशफ़ाक़ साहब ने कहा


इस तरह कि बात सुन सेहर जी और आरज़ू के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गयी  और उन्होंने ज़ोया कि तरफ देखा


ज़ोया जो घबरा सी गयी और बोली " ये,,, ये,,, झूठ हैँ जरूर अब्बू को किसी ने गलत बताया हैँ,,, ऐसा कुछ नही हैँ,,, अब्बू मेरा यकीन कीजिये ऐसा कुछ नही हैँ,,,,, मैं मानती हूँ मैंने झूठ बोला कि मैं रिक्शा से घर आयी थी,, बस उसने मुझे देखा और वो घर ही आ रहा था इसलिए उसने मुझे बाइक पर बैठा लिया,, मेरी कोई गलती नही हैँ, मैं सच बोल रही हूँ "


"खामोश,,, एक दम खामोश ,, वरना कही ऐसा ना हो ये मेरा हाथ गुस्से में तुम पर उठ जाए, झूठ बोलना और हमें बेवक़ूफ़ बनाना बंद करो, मैंने सब कुछ अपनी आँखों से देखा हैँ, पल भर को मान भी लेता कि तुम उस लड़के के साथ बाइक पर बैठ कर घर आयी होगी, क्यूंकि वो भी घर आ रहा था,, लेकिन रोज़,,, नही ज़ोया,, हरगिज़ नही वहाँ बैठे दरबान ने जो कुछ मुझे बताया हैँ उसके बाद तुम्हारी बातों और यकीन करना बेवकूफी होगी


आज तुमने मेरा मान, मेरा भरोसा सब तोड़ दिया,, आप लोगो को पता हैँ इसने सिर्फ हमें बेवक़ूफ़ ही नही बनाया है ,बल्कि इसने  पढ़ाई के नाम पर भी हमारे साथ विश्वास घात किया हैँ, हमें लगता था कि हमारी बेटी कॉलेज पढ़ने जाती हैँ लेकिन ये तो वहाँ रंग रलिया मनाने जाती थी जिसके चलते  ये फ़ैल भी हो गयी थी और हमें धोखे में रखने के लिए इसने हमसे झूठ बोला कि ये पास हो गयी हैँ, क्यू सही कहा ना? " अशफ़ाक़ साहब ने कहा गुस्से से


सेहर जी को तो अपने कानो पर यकीन नही हो रहा था, जो भी कुछ वो अपने शोहर से अपनी बेटी के बारे में सुन रही थी, कोई और होता तो मान लेती कि वो झूठ कह रहा हैँ, लेकिन उनका शोहर जोया का बाप ये सब कह रहा था


आरज़ू जिसे उसके फ़ैल होने का तो पता था लेकिन उसके इस तरह गली के लड़के के साथ चककर वाली बात नही पता थी, उसे डर था कि अब्बू को पता चला कि उसके फ़ैल होने कि बात वो जानती थी  तो उसे भी बहुत डांट लगेगी और अब्बा का दोनों पर से भरोसा उठ जाएगा इसलिए आरज़ू खामोश ही रही


सेहर जी ने ज़ोया कि तरफ देखा और बोली" सच बता,, तेरा बाप जो कुछ कह रहा हैँ वो सच हैँ,,, क्या तू उस लड़के के साथ कॉलेज आती जाती थी, कौन हैँ वो तेरा, क्या लगता हैँ? किस हैसियत से वो तुझे कॉलेज छोड़ने और लेने जाता था, बता मुझे,, हमारा मुँह तो काला नही कर दिया तूने,, या अल्लाह ये दिन भी देखना था मुझे अपनी औलाद के हाथो  बदनाम होने का "


"नही अम्मी,,, जैसा आप सोच रही हैँ वैसा कुछ नही हैँ, मैं डर गयी थी, मैं आप सब को बताने ही वाली थी कुछ दिनों में रिजल्ट आने वाला था, सोचा था पास होने के बाद बता दूँगी," जोया ने काँपते हुए कहा


"भाड़ में जाए तेरी पढ़ाई और तेरा वो रिजल्ट, मुझे ये बता कि आखिर उस लड़के के साथ तेरा क्या चककर हैँ, क्यू वो तुझे कॉलेज छोड़ने जाता था और कॉलेज से लाता था, क्यू तू उसके साथ बाइक पर घूमती थी, तुझे जरा भी फ़िक्र नही अपने बाप कि और हमारी इज़्ज़त की, मुझे इस बात का जवाब दे नही तो मैं तेरा गला घोंट दूँगी, जो पहले ना कर सकी वो अब कर दूँगी  " सेहर जी ने कहा और उसके गले की तरफ हमला कर दिया


"अम्मी,, अम्मी ये क्या कर रही हैँ आप? छोड़े उसे,,, उसे दर्द हो रहा हैँ,, उसका गला छोड़े " आरज़ू ने अपनी माँ का हाथ ज़ोया की गर्दन से छुड़ाते हुए कहा


"नही आज नही,, आज मैं इसे नही छोडूंगी, ज़ब तक ये बता नही देगी की आखिर किस हक़ से ये उस लफंगे के साथ घूम रही थी और हमें बेवक़ूफ़ बना रही थी , बता ज़ोया नही तो तू अपनी माँ को जानती हैँ तेरा बाप तुझे बाद को मारेगा लेकिन मैं उससे पहले ही तुझे मौत की नींद सुला दूँगी , जो भी हैँ सच सच बता  कब से हमारे मुँह पर कालिख पोत रही हैँ " सेहर जी ने कहा गुस्से से जो की ज़ोया का गला पकड़ी हुयी थी काफ़ी देर बाद आरज़ू ने उसका गला छुटवा दिया


ज़ोया दूर जाकर गिरी और गहरी गहरी सास लेने लगी और चीख कर बोली " आपको जानना हैँ ना, कौन हैँ वो मेरा तो सुनिए प्यार करते हैँ हम दोनों, बहुत जल्द शादी भी करने वाले हैँ, मैंने उसे अपना शोहर तस्लीम कर लिया हैँ, और उसी हक़ से मैं उसके साथ बाइक पर बैठ कर कॉलेज आती जाती हूँ "

ये सुनने के बाद तो मानो अशफ़ाक़ साहब, सेहर जी और आरज़ू के पैरों तले ज़मीन ही निकल गयी, सेहर जी गुस्से में उसकी तरफ दौड़ी और जाकर उसके गाल और दो तीन तमाचे मार कर बोली


बेशर्म, बेहया, तुझे शर्म नही आयी ,,, अपने बाप के सामने इस तरह ठीठाई के साथ कह रही हैँ की तू उससे और वो तुझसे प्यार करता हैँ, तेरी मोहब्बत का भूत अभी उतारती हूँ सेहर जी ने कहा और उसे मारने लगी  इस तरह ज़ोया को मार खाता देख आरज़ू उसे बचाने पहुंची लेकिन सेहर जी का गुस्सा सातवे आसमान पर था, उन्होंने आरज़ू की भी नही सुनी


तब ही अशफ़ाक़ साहब ने उन्हें रोका, जिसके बाद वो ज़ोया को मारने से रुक जाती हैँ और कहती हैँ " मारने दीजिये मुझे इसे, आप लोगो की वजह से ही आज इसकी इतनी हिम्मत हुयी हैँ की ये हमारे सामने उस लफंगे से प्यार का इजहार कर रही हैँ, मैं कहती थी इतनी छूट मत दीजिये, क्यूंकि जिन पतंगों को ज्यादा ढील मिलती हैँ , वो अक्सर बेकाबू हो जाती हैँ, जैसे की ये हो गयी आपकी छूट पाकर,"


अशफ़ाक़ साहब ने ज़ोया की तरफ देखा जो की अकड़ में खड़ी हुयी थी  उन्हें इस तरह अपनी बेटी को देख बेहद सदमा सा लगा, उनका दिल रो सा रहा था क्यूंकि उनके भरोसे और मान को उनकी बेटी ने मिट्टी में मिला दिया था और उस लफंगे लड़के से प्यार कर रही थी जिसका ना तो कोई आज हैँ और ना ही कोई मुस्तकबिल, भले ही जोया को उसने प्यार के जाल में फसा लिया हो और ढेर सारे लाल बाग दिखा दिए हो, लेकिन जिंदगी सिर्फ कल्पनाओं पर तो नही गुज़र सकती, जिंदगी जीने के लिए आज का होना ज़रूरी हैँ,

ये बात वो नही जानती थी लेकिन उसका बाप अच्छे से जानता हैँ, की वो लड़का  सिवाय धोखा देने के कुछ नही दे सकता उनकी बेटी को क्यूंकि उन्होंने अपने बाल धूप में सफ़ेद नही किये थे, एक उम्र गुज़ारी हैँ उन्होंने लोगो के चेहरे पढ़ने में


अशफ़ाक़ साहब जो चाहते हुए भी अपनी बेटी को दुख नही देना चाहते थे  लेकिन इस समय उन्हें कठोर बनना था, और कोई अहम् फैसला लेना था क्यूंकि ये उनकी बेटी के मुस्तकबिल का सवाल था और उनकी इज़्ज़त का भी, वो लड़का जिसे कोई भी मोहल्ले का इंसान पसंद नही करता सिर्फ और सिर्फ उसकी आदतों की वजह से वो कैसे उसे अपना दामाद बना सकते हैँ, कोई भी बाप नही चाहेगा की वो अपनी औलाद को अपनी बरसों की जमा पूँजी को दोजख के हवाले करदे,


अब समय था अशफ़ाक़ साहब को कोई फैसला सुनाने का सब खामोश खड़े थे,


.................


वही दूसरी तरफ  तबरेज को घर जल्दी आता देख आमना जी को अजीब लगा  और वो बोली " क्या हुआ बेटा? तुम्हारी तबीयत तो ठीक हैँ, आज जल्दी आ गए  "


"जी अम्मी, तबियत ठीक नही थी इसलिए जल्दी आ गया," तबरेज ने कहा


"अच्छा किया जो आगये, तुम कमरे में जाओ, मैं अभी कुछ खाने का लाती हूँ फिर दवाई खा कर सो जाओ, मौसम बदल रहा हैँ, शायद इसलिए ऐसा हो रहा हैँ " आमना जी ने कहा


"शुक्रिया अम्मी, आप आये कमरे में मुझे कुछ बात भी करनी हैँ " तबरेज ने कहा


"सब ठीक तो हैँ बेटा, क्या बात करनी हैँ?" आमना जी ने थोड़ा घबराते हुए पूछा


"नही..नही अम्मी ऐसी कोई बात नही हैँ, बस आप आ जाइये फिर मैं बताता हूँ " तबरेज ने कहा


"ठीक हैँ बेटा तुम चलो, मैं दवाई लेकर आती हूँ " आमना जी ने कहा और वहाँ से चली गयी 

तबरेज भी हाथ मुँह धोकर बिस्तर पर लेट गया चादर ओढ़ कर उसे ठण्ड सी लग रही थी 

थोड़ी देर बाद आमना जी वहाँ आयी, तबरेज ने थोड़ा बहुत कुछ खाया और दवाई खा ली और अपनी माँ से बोला " अम्मी मुझे मामू के मुताल्लिक कुछ बात करनी हैँ "


"क्या हुआ? सब ठीक तो हैँ, क्या हुआ मेरे भाई को? वो ठीक तो हैँ " आमना जी ने कहा घबराते हुए 



"घबराने की कोई बात नही हैँ अम्मी, दरअसल घर आने से पहले मैं, मामू की दुकान की तरफ गया था, वहाँ मुझे मामू की दुकान के पास वाली दुकान पर काम करने वाले नोमान भाई मिले थे , जिनसे मेरी काफ़ी अच्छी दोस्ती थी, मैं तो दूर से ही मामू की दुकान देख कर घर आ रहा था, आज ना जाने क्यू मेरे कदम खुद बा खुद मामू की दुकान की तरफ चल पड़े , लेकिन अचानक पीछे से मुझे नोमान भाई ने रोक लिया और थोड़ी और बहुत बात चीत हुयी

अम्मी उन्होंने मुझे बताया " तबरेज कुछ कहता उससे पहले ही आमना जी बोल पड़ी " क्या हुआ बेटा? क्या बताया उन्होंने?


"अम्मी वो बता रहे थे , की ज़ब से मैंने दुकान जाना छोड़ा है , तब से मामू भी दुकान पर नही आये है, उनकी तबीयत ख़राब रहने लगी है, वो बीमार है ' तबरेज ने कहा


"अच्छा " आमना जी ने कहा

"क्या हुआ अम्मी? आपने इतनी उदासी से अच्छा क्यू कहा? क्या आपको मामू का बीमार होना अच्छा लगा ' तबरेज ने पूछा


"नही बेटा ऐसा कुछ नही है "आमना जी ने कहा


"फिर अम्मी, आपको उनके पास जाना चाहिए , मामू बीमार है " तबरेज ने कहा

"वो भी तो एक बार यहाँ नही आये, मेरी आँखों में आँखे डाल कर बात करते, की आखिर क्यू उन्होंने मेरे बेटे पर लगे इल्जाम को सच मान लिया, एक बार मुझसे आकर पूछते, क्या उन्हें मेरी परवरिश पर भरोसा नही " आमना जी ने कहा


"छोड़ भी दो अम्मी अब, उस बात को हुए महीने गुज़र गए, और अब देखो मुझे काम भी तो मिल ही गया, रात गयी बात गयी  " तबरेज ने कहा


"बेटा महीने ही तो गुज़रे है, जख्म तो हरा ही है अभी, जो कुछ उन्होंने तुम्हारे साथ किया, अपने बीवी बच्चों की बातों पर भरोसा किया जानते हुए भी की तुम मुझसे ज्यादा उनकी गोदी में पले बड़े हो, आखिर कैसे वो तुम्हे चोर करार दे सकते है , किस तरह वो तुम्हारी मेहनत का बदला इस तरह तुम्हे दे सकते है  "आमना जी ने कहा


"अम्मी वो जो ऊपर बैठा है, बेहतर इंसाफ करने वाला है , ज़ब हमें उसके इंसाफ पर यकीन है तो हमें खुद से किसी से उसके किये का बदला लेने की क्या ज़रुरत, अम्मी इस समय आपको नाराज़गी भूल कर मामू का पूछना करना जाना चाहिए, और आप ही तो कहती है की मरीज़ का पूछना करने जाना भी एक तरह की इबादत है , तो वो तो आपके भाई है  और हमारे इकलौते मामू, उन्हें आपकी ज़रुरत है  एक भाई के लिए उसकी बहन क्या मायने रखती है ये आप अच्छे से जानती है


"अल्लाह ना करे कल को मामू को कुछ हो गया  तो सबसे ज्यादा दुख आपको ही होगा की आप आख़री समय में आप उनसे मिल भी नही सकी, आपके लिए मामू की नाराज़गी उनके अब तक के किये गए सारे एहसानों पर भारी थे , अम्मी पापा के जाने के बाद मामू ही तो थे  जिन्होंने आपको और हमें सहारा दिया, अब इस तरह एक छोटी सी नाराज़गी के चलते उनसे लताल्लुकि तो नही कर सकते , अम्मी आप वायदा कीजिये आप मामू का पूछना करने जाएंगी, मेरी वजह से आप अपने भाई से रिश्ता ख़त्म नही करेंगी , क्यूंकि रिश्ते बहुत कीमती होते है, उनके टूटने पर छोड़ कर चले जाने पर सबसे ज्यादा दुख खुद को ही होता है  " तबरेज ने कहा



तबरेज की बाते सुन आमना जी खामोश बैठी थी , वो बस अपने बेटे को सुन रही थी  जो भी कुछ वो कह रहा था



क्या होगा? क्या आमना जी तबरेज के कहने पर अपने भाई से मिलने जाएंगी, क्या वो अपने भाई को माफ कर सकेंगी?
और क्या होगा अशफ़ाक़ साहब का फैसला ज़ोया को लेकर इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए जुड़े रहे अगले अध्याय में हमारे साथ 

धन्यवाद 




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6 Comments

Gunjan Kamal

03-Jan-2023 12:20 PM

शानदार भाग

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Varsha_Upadhyay

30-Dec-2022 05:25 PM

बेहतरीन

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